पुण्य सलिला गण्डकी सम्प्रति घाघरा की कछार में बसा कैसरगंज, बहराइच जनपद का शैक्षिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वाधिक पिछड़ा हुआ क्षेत्र है, इसकी प्रमुख विशेषता थी, इसका स्वाभिमान, जागृत चेतना और अध्यात्म के प्रति सहजोमुखी दृष्टि. मध्य युग में यहाँ सूफियों का वर्चस्व रहा और अर्वाचीन स्वत्रंता संग्राम में परमपूज्य ठाकुर हुकुम सिंह, ठाकुर पुत्तू सिंह प्रमृति भारत माता के सपूतों की श्रृंखला बनी जिसमे हिन्दू मुस्लिम सभी ने एक साथ मिलकर एकता की अदभुत मिसाल कायम की. यद्यपि इस क्षेत्र में बड़े पूंजी पति, तालुकदारों, जमीदारों एवं समाज सेवियों की बहुतायत थी किन्तु सखेद लिखना पड़ता है की यहाँ के क्षेत्रवासियों की दृष्टि शैक्षिक उन्नयन की ओर नहीं गयी, हाँ एक नाम प्रशंस्य है बाबु श्री सत्य नारायण सिंह का जिंनकी प्रेरणा एवं सहयोग से ठाकुर हुकुम सिंह इंटर कालेज, कैसरगंज एवं चौधरी सियाराम इंटर कालेज, फखरपुर की स्थापना हुई. उच्च शिक्षा की अब भी यहाँ कोई व्यवस्था नहीं थी | इस अभाव की पूर्ति एक संत ने की. सत्र 1993 में नकहा बरदहा परमहंस आश्रम के संत बाबा संतराम दास कैसरगंज आये. उन्होने जनता में उच्चा शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव किया. स्वयं धन की व्यवस्था करके तीन शैक्षिक एवं ग्यारह प्रशासनिक कक्षों का निर्माण करवाया. इसी वर्ष 24 नवम्बर 1993 को बाबा संतराम दास द्वारा परमहंस महाविद्यालय कैसरगंज, बहराइच की स्थापना की गयी जिसका उद्घाटन डॉ० राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद के प्रो० विजय कुमार पाण्डेय ने की, तथा स्नातक प्रथम वर्ष एक अनुसूचित जाती के छात्र का प्रवेश महाविद्यालय के तत्कालिन प्राचार्य डॉ० नीरज बाजपेयी से कराकर प्रवेश की औपचरिकता पूरी की |
प्रारम्भ में शासन द्वारा महाविद्यालय को छ: विषयों हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्रा० इतिहास, राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र में अस्थाई सम्बद्धता 01.07.1995 से आगामी तीन वर्षो के लिए प्रदान की गयी. तीन वर्ष तक महाविद्यालय का संचालन करके सकुशल चलता रहा, इसी बीच कतिपय अपरिहार्य कारणों से संस्थापक प्रबंधक बाबा संतराम दास महाविद्यालय छोड़कर कही चले गए. तत्पश्चात महाविद्यालय प्रबंधकीय अव्यवस्था का शिकार हो गया| कालेज के अस्तित्व को बचाने के लिए महाविद्यालय के तत्कालिन प्राचार्य डॉ० नीरज बाजपेयी ने क्षेत्र के समस्त नागरिकों एवं बुद्धि जीवियों की बैठक उनके समक्ष महाविद्यालय की स्थायी सम्बद्धता में आने वाली भूमि की समस्या को अवगत कराया जिस पर बैठक में मौजूद जरवल ब्लाक प्रमुख श्री राजेंद्र सिंह ने महाविद्यालय को 25 बीघा जमीन दान देने की घोषणा की तथा बैठक में ही लोगो ने उनकी उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए महाविद्यालय का अगला प्रबंधक मनोनीत किया | जमीन मिलने के पश्चात संस्थापक /प्राचार्य डॉ० नीरज बाजपेयी ने वर्तमान प्रबंधक श्री राजेंद्र सिंह के अथक प्रयास से स्थायी सम्बद्धता की पत्रावली शासन को भेजी. शासन की लापरवाही के कारण मा० उच्चन्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के आदेश 18.11.2002 द्वारा इस महाविद्यालय को स्थाई सम्बद्धता देने का आदेश उ0प्र0 सरकार को पारित किया गया, जिसके अनुपालन में कुलाधिपति, उ0प्र0 राज्य विश्वविद्यालय लखनऊ द्वारा 01.07.2002 से स्थाई सम्बद्धता इस महाविद्यालय को प्रदान की गयी |
वर्तमान प्रबंधन समिति के अथक प्रयास से इस महविद्यालय को तीन अतिरिक्त विषयों क्रमशः समाज शास्त्र, शिक्षा शास्त्र एवं अर्थशास्त्र विषयों में अस्थायी सम्बद्धता 01.07.2008 से प्रदान की गयी तथा उक्त विषयों में स्थाई सम्बद्धता पुन: 01.07.2011 से राज्य सरकार द्वारा दी गयी. कला संकाय के अन्तर्गत स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में हिंदी एवं प्राचीन इतिहास विषयों में अस्थायी सम्बद्धता 01.07.2010 से प्रदान की गयी तथा उक्त विषयों से स्थायी सम्बद्धता 01.07.2012 से प्रदान की गयी. इस महाविद्यालय को सर्व प्रथम तत्कालिन प्राचार्य डॉ० नीरज बाजपेयी के अथक प्रयास से 2001-2002 भारतीय जनतापार्टी के विधान परिषद् सदस्य श्री सुभाष त्रिपाठी द्वारा 200 मीटर खडंजा का निर्माण कराया गया जिस पर सदस्य जिला पंचायत श्री रवि सिंह के सौजन्य से आर.सी.सी. बनाई गयी जो महाविद्यालय के आवागमन हेतु सुगम साधन है सत्र 2005-2006 में क्षेत्रीय विधायक श्री मुकुट बिहारी वर्मा की निधि से एक कमरे का निर्माण कराया गया, सत्र 2009-2010 में राज्य सभा सदस्य श्री भगवती सिंह की निधि से एक कक्ष का निर्माण वर्तमान प्रबंधक श्री राजेंद्र सिंह के अथक प्रयास से कराया गया |
गुणात्मक एवं सुधार हेतू छात्र/छात्राओं को भावी भविष्य निर्माण हेतु राष्ट्रीय सेवा योजना की एक इकाई संचालित है जिसमे कंप्यूटर, इन्टरनेट पुस्तकालय की सुविधा उपलब्ध है | पुस्तकालय को आधुनिक साज सज्जा से युक्त किये जाने का प्रयास प्रगति पर है पुन: 2010-2011 में वर्तमान सांसद श्री ब्रजभूषणशरण सिंह की सांसद विधि से एक कमरे की धनराशी 2.00 लाख रुपये दी गयी, जिसमे प्रबन्ध समिति ने अपनी निधि से 5.00 लाख रुपये खर्च करके एक कमरे एवं बरामदे का निर्माण कार्य करवाया है | वर्तमान प्रबंध समिति के कुशल निर्देशन में यह महाविद्यालय की श्रृंखला में सबसे प्रगति के पथ पर अग्रसर है | जनपत बहराइच के स्ववित्तपोषित महाविद्यालय की श्रृखला में सबसे पुराना महविद्यालय होने के नाते यह महाविद्यालय अपनी शैक्षिक उत्कृष्टता, अतियोग्य अनुभवी अध्यापकों मूल्यवान उपकरणों से सुसज्जित भव्य भवनों के समवेत गुणों से अद्धितीय एवं अग्रगण्य है | उपरोक्त उपलब्धि पर महाविद्यालय परिवार ही नहीं, अपितु क्षेत्रीय जन अपने को गौरवन्वित महसूस करते है |